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अब का जलतो घी के दीआ? / सच्चिदानंद प्रेमी

अब का जलतो घी के दीआ?
धोती-साड़ी दाग लगल हो-
रंग नजर के फीके-फीके,
चीखे में भी ठोर न भिंजतो-
कहाँ जलैबऽ दीया घी के?
काम न चलतो चरितर बल से,
धन-दौलत जन लठधर नऽ होतो-
हमरे एैसन तड़पत रहबऽ
कहतो सब हइ पागल जीआ।
अब का जलतो घी के दीआ।