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आओ, हम-तुम अपने संसार का / अज्ञेय

 आओ, हम-तुम अपने संसार का फिर से निर्माण करें।
हम बहुत ऊँचा उडऩा चाहते थे-सूर्य के ताप से हमारे पंख झुलस गये। उस वातावरण में हमारा स्थान नहीं था।
हम अपना नीड़ पृथ्वी पर बनाएँगे।
नहीं, वृक्ष की डालों पर नहीं; वहाँ भी पवन का वेग हमें कष्ट देगा। हम अपना छोटा-सा नीड़ इस भूमि पर ही बनाएँगे।
हम ने बहुत मान किया है।
किन्तु भूमि पर हमारे घर में अब वह अभिमान नहीं होगा। लोग हमें अति क्षुद्र समझ कर ठुकराना भी भूल जाएँगे।
नहीं, हम अपने लिए एक नीड़ भी क्यों बनाएँ?
हमें अपना स्वत्व कहने को कुछ नहीं चाहिए। हम भूमि पर रहेंगे-केवल हम-तुम, और हमारे आगे निस्सीम संसार। जब हमारे पास कुछ भी नहीं रहेगा जो दुनिया हम से छीन सके, तब हमारे जीवन में विष-बीज बोने कोई नहीं आएगा।
अत: आओ, हम-तुम अपने संसार का फिर से निर्माण करें।

दिल्ली जेल, 2 नवम्बर, 1932