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आजमाया है तुम्हीं ने / प्रेमलता त्रिपाठी

व्यर्थ बातों में मुझे ही आजमाया है तुम्हीं ने।
कुछ सुनी मेरी न अपनी ही सुनाया है तुम्हीं ने।

क्यों दिया हर बार मुझको ही सजा ऐसी कहो तो
था लिखा क्या रेत पर जिसको मिटाया है तुम्ही ने।

पास रहने की कसम खायी सदा यह सोचना तुम,
दूर जा हर बार हमको फिर रुलाया है तुम्हीं ने।

हूँ अगर अवरोध बनकर मैं तुम्हारे मार्ग का अब,
कल्पना यह क्यों रही पलकों बिठाया है तुम्हीं ने।

आइना हूँ कर्म का अपने स्वयं ही आज तक मैं
प्रेम हूँ आँसू नयन जिसको छिपाया है तुम्हीं ने।