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आज झूम के गा लेवे दऽ / सच्चिदानंद प्रेमी

आज झूम के गा लेवे दऽ
जे ज्वाला हिरदा में फुटलो,
ओकरे गीत में सुर आवे दऽ।
उवटन हाँथ के पीले रहगेल
कजरा अँखिया के गदरायल,
हाँथ उठा के हाँक लगावे-
जेकर जिनगी हे छितरायल;
इहाँ रंग पर भंग उड़ल हे-
मस्ति के त्योहार सजल हे-
खून आउ रंग हर शृंगार पर
चढ़े, चढ़ावे आउ छावे दऽ।
काहे रो रहलें तू दुलहिन-
ऐसन रात तो फिर आ जयतो,
लेकिन विधवन के रोना-धोना-
सुन न´् तोहर छाती फटतो?
कोहवर घर के रात अलग है।
मौज मस्ती के बात अलग है,
बांध कलेबा टिका करके विदा करऽ न रोबेगाबेऽ
रोंदल दूर पहाड़ी पर से बोला रहल हे आज जवानी
माफ करत जो न गेलूँ तो का हमरा चुरूआमर पानी
मिट्टी के कर्जा चढ़लो हे, लोट लपेट के तंग बढ़लो हे
मौका आज मिलल हे जल्दी, पुराना कर्ज चुका आवेऽ।