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आज संस्कारों का अर्पण लो! / राजेन्द्र प्रसाद सिंह

आज संस्कारों का अर्पण लो!
गुहा-मनुज मुझ में चुप/प्रस्तर–युग मौन,
धातु-छंद से मुखरित/करतल-ध्वनि कौन?
मध्ययुगी रक्त-स्नात यौवन का दर्पण लो!
आधुनिक मनुज मेरे/नख शिख में लीन,
विद्युन्मुर्च्छिता/धरा में यंत्रासीन,
‘इहगच्छ, इहतिष्ठ’- अजिर का समर्पण लो।
लो, अब स्वीकारो यह व्यापक सन्देह,
अपने प्रति शंका का उद्वेलित गेह,
विगत के कुशासन पर आगत का तर्पण लो
आज संस्कारों का अर्पण लो।"