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आधी नींद के बाद / रश्मि भारद्वाज

आधी नीन्द में अक्सर चौंक कर उठती हूँ
लगता है तेज़ बारिश हो रही है
जबकि बाहर खिली धूप होती है
शायद ऐसी बारिशें अब नीन्द में ही होती हैं या मन में
आधी नीन्द में देखती हूँ एक सपना
हम हाथ थामे चले जा रहे हैं
और सड़क एक अन्त के बाद कहीं नहीं जाती
कोई हमारे साथ राह के अन्त तक चला आया
ऐसे हादसे भी तो अब आधी नीन्द में ही होते हैं
आधी नीन्द में अक्सर लिखती हूँ एक कविता
जागने पर याद रह जाते हैं बस कुछ अक्षर
शायद कभी हो कि एक ऐसी ही आधी नीन्द से जागें
और कुछ शब्द हमेशा के लिए भूल चुके हों
आधी नीन्द लाती है अधूरे सपने, अधूरी कविताएँ
एक अधूरी ज़िन्दगी
मुझे एक पूरी नीन्द चाहिए