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आये नचनिये / अज्ञेय

 कैसे बनठनिये आये नचनिये!
‘पाय लागी, पाधा,
राम-राम, बनिये!
हम आये नचनिये!’
‘नाचोगे?’ ‘काहे नहीं नाचेंगे?
जब तक नचायेंगे!’
‘जब तक?-अच्छा तो,
जब तक तुम गिनोगे,
जब तक ये बाँचेंगे!’
‘ऐसा, तो देखें कहाँ तक!’
‘देखो, जब तक, जहाँ तक!
हमारा क्या, हम तो नचनिया हैं
नाचेंगे भोर से रात तक
और सोम से जुम्मे रात तक
फागुन से असाढ़ तक
और सूखे से बाढ़ तक
चँदोवे से कनात तक
घर से हवालात तक
कानपुर से दानपुर
रामपुर से धामपुर
सोलन से सुल्तानपुर
दीरबा कलाँ से देवबन्द
चाहचन्द से रायसमन्द।
एटा से कोटा, बड़ौत से बरपेटा
गया से गुवाहाटी
बरौनी से राँगामाटी।
लहरतारा से लोहानीपुर
बऊबाजार से मऊरानीपुर,
पिपरिया से सिमरिया
झाँसी से झूँसी और झाझर से झरिया।
छिली ईं से नरही
और बारह टोंटी से तत्ता पानी
तीन मूरती से पँच बँगलिया
कसेरठ से खड़ा घोड़ा
खेखड़े से खखौदा,
पीलीभीत से लालबाग
और मेरठ से अलमोड़ा।
चौड़े रास्त से नाटी इमली
तंजाऊर से तिरुट्टानी
भोगाँव से बलिया।
तुम गिने जाव, वह बाँचे जाएँ
तो ठीक है, हम हू नाचे जाएँ!
बड़ी दूर से आये हैं
हम न ठाकुर न बनिये
हम हैं नचनिये!!’

नयी दिल्ली, 11 मई, 1980