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इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़र न था / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़र न था
जब हिना से तेरे पाँव को सरोकार न था

हुस्न का जज़्ब ज़ुलेख़ा सेती कुछ चल न सका
वर्ना ये पाक गुहर क़ाबिल-ए-बाज़ार न था

दिल में ज़ाहिद के जो जन्नत की हवा की है हवस
कूच-ए-यार में क्या साया-ए-दीवार न था

दिल मेरा इश्क के धड़कों से मुवा जाता है
ये वो दिल है कि कोई ऐसा जिगर-दार न था

‘‘आप से क्यूँ न हुआ’’ कह के ‘यक़ीं’ को मारा
रास्त पूछो तो कोई मुझ से गुनह-गार न था