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उठले दरदिया जियरा, बाउर मोर हे ननदी / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रसव-जनित वेदना प्रारंभ होने पर जच्चा व्याकुल होकरननद को जगाने जाती है तथा वह उससे सँभालने और अपने प्रियतम को जगा देने का अनुरोध करती है। उसका प्रियतम खबर पाकर विहँसता हुआ आता है और अपनी प्रियतमा से पूछता है कि तुम्हें कैसा दर्द हो रहा है? उसकी पत्नी उसके व्यवहार से खीझती हुई कहती है कि पेट में दाहिने-बायें रह-रहकर टीस हो रही हैं। वह शीघ्र डगरिन को बुलाने को कहती है। भोर होने पर उसे पुत्र-रत्न की प्राप्ति होती है। वह अपनी ननद से प्रार्थना करती है कि दो-चार सखियों को बला दो कि वे आकर सोहर गावें। उनके सोहर को सुनकर दर्द को भुलाने में कुछ समर्थ हो सकूँगी।

उठले दरदिया जियरा, बाउर<ref>खराब, बावला</ref> मोर हे ननदी।
बाउर मोर हे ननदी, सँभारू मोर हे ननदी।
अहे, खोलू न हे केवड़िया, झट सेॅ उठी जाहो ननदी॥1॥
अहे, उठी क पिया क, जगाय देहो हे ननदी।
अहे, उठी क जे पियवा मोर, मुसकाबै लागलै हे ननदी॥2॥
बहियाँ पकड़ि क पिया मोर, बतिया पूछै हे ननदी।
अहे, कौन तरे बदनमा दुखबा, हूअ लागलै हे सजनी॥3॥
दरद से बेयाकुल मन मोरा, खीझै लागलै हे ननदी।
दूरे जाहो फरके<ref>अलग</ref> जाहो, पियवा मोर हे ननदी॥4॥
बाम त रे दहिनमा पँजरा मोर, दुखवै लागलै हे ननदी।
अहे, गाया जी से दगरिन मोरी, बोलाय देहो हे ननदी॥5॥
आधि रात अगली, पहर राति हे पिछली।
होयत भिनसरबा होरिला<ref>बच्चा; बालक</ref> के, जनम भेलै हे ननदी॥6॥
अहे, दुई चार सखिया अबे, बोलाय देहो हे ननदी।
अहे, गाय बजाय के सोहर, सुनाय देहो हे ननदी॥7॥

शब्दार्थ
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