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उम्मीद-ए-वफा हम किससे करें, हर शख्स यहाँ पराया है / पल्लवी मिश्रा

उम्मीद-ए-वफा हम किससे करें, हर शख्स यहाँ पराया है,
जीवन की तपती राहों में, न पेड़ ही है न साया है।

रिश्तों के जंजाल में फँसकर भूल न जाना तू ऐ दिल,
तन्हा ही उसको जाना है, तन्हा जो जहाँ में आया है।

दूर अँधेरा करने को हमने तो दिल ही जला डाला,
पर दीपक के तले अँधेरा फिर भी न मिट पाया है।

दुनिया का दस्तूर पुराना इक पल में न बदलेगा,
सुख में लाखों साथी घेरे, दुःख में कोई न आया है।

काश कि वो करते महसूस, अश्कों को और आहों को,
पर साँसों की गर्मी से पत्थर पिघल कब पाया है?

भूले से जो हमको खुदा अगर मिल जाए कहीं,
पूछें क्या है मकसद इसका, क्यों संसार बनाया है?