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कथि लेली देव दिआवन, भगती अराधल रे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इस गीत में पति की महिमा तथा पुत्र की आकांक्षा का उल्लेख हुआ है। पुत्र के बिना पत्नी का घर सूना है। उसी कारण उसे सास, ननद और पति की ओर से उपेक्षा और अनादर भी प्राप्त होता है। वह गंगा में स्नान करके हरिवंशपुराण सुनती है। परिणाम-स्वरूप, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है। और फिर, घर में उसका सम्मान बढ़ जाता है।

कथि लेली<ref>किसलिए; क्या लेकर</ref> देव दिआवन<ref>देना-लेना; देवता की आराधना</ref>, भगती<ref>भक्ति</ref> अराधल<ref>आराधना</ref> रे।
ललना, कथि लेली सूनऽ संसार, सरीर कोना<ref>किस तरह</ref> साधब रे॥1॥
सामी लेली देव दिआवन, भगती अराधल रे।
ललना, पुतर लेली सूनऽ संसार, सरीर कोना साधब रे॥2॥
गंगहिं पैसी नहायब, हरिबंस सूनब रे।
सासु मन टूटल ननदी मन, औरु सभै के<ref>सबका</ref> मन रे।
ललना, सामी घर होय छै कुआदर, के करै आदर रे॥3॥
गंगहि, पैसी नहायब, हरिबंस सूनब रे।
ललना, जनमत रूप नारायण, अबे मन पूरत रे॥4॥
सासु मन रहलौं ननदी मन, औरु सभै के मन रे।
ललना, सामी घर होबै सुहागिन, सभै करै आदर रे॥5॥

शब्दार्थ
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