Last modified on 1 मार्च 2010, at 15:33

कब पूरेगा यह सपना / प्रेम नारायण 'पंकिल'

 
कब पूरेगा यह सपना।
बढ़े प्रेम आनन्द बन्द हो मोह-निशा में झॅंपना
कब पूरेगा यह सपना।।

प्रभु से विह्वल हो कहती हों
माता हिमगिरि-जाया।
नाथ उठा लो बड़ा दीन है
रोता-गाता आया।
कह दो प्रभु स्वीकार कर लिया
इसे शरण में रखना-
कब पूरेगा यह सपना ।।1।।

हेरें हमें प्रिया-प्रियतम के
जलज नयन के कोने।
निज प्रभु की करूणा निहार मैं
लगूँ फूट कर रोने।
उन्हें याद हो जाय विरद निज
मुझको दुर्गुण अपना-
कब पूरेगा यह सपना ।।2।।

नीचे झुके कलंकित माथा,
रूद्ध हुई हो वाणी।
बस इतना ही स्वर निकले
प्रभु महा अधम मैं प्राणी।
माँ मुँह मेरा उठा पोंछ दे
आँसू-सलिल टपकना-
कब पूरेगा यह सपना ।।3।।

सिर सहलाते कहती हों माँ,
सुत अधीरता त्यागो।
मेरे लाल, लाडिले बेटे,
माँगो ‘पंकिल’ माँगो।
कहूँ न कोई छीने प्रियतम
नाम आपका जपना-
कब पूरेगा यह सपना ।।4।।