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कब हुआ, दुनिया में ऐसा हादिसा / शहरयार

कब हुआ, दुनिया में ऐसा हादिसा
मोतकिद है बादे-सर सर की सबा

धुंध की ज़द में है ख्वाबों का उफ़क़
देखिये दिखलायें आंखें और क्या

ढल गई क्यों आरिज़ों की चांदनी
खुल गई कब ग़म की सांसों की घटा

साअतों के पेचो-खम के बाद भी
कुर्ब का अंजाम दूरी ही रहा

खो गये सारे मुसाफ़िर याद के
हो गया वीरान दिल का रास्ता

बुझ गया आखिर चिराग़े 'आरज़ू'
वार भारी था हवा के हाथ का।