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कर्मयोगी / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

ने भगता योगी आ ने डलबाह
हरखक तरंग नै, नै वि‍पत्ति‍क आह
पहि‍लुक दर्शन कहि‍या भेल
नै अछि‍ मोन
जहि‍यासँ देखैत छि‍यनि
वएह गंभीर मुस्की ..
ककरो उपहास नै
ककरो परि‍हास नै
नै ठोरपर वसन्तक गान
नै हि‍अमे ग्रीष्माक मसान
नेना सभक प्रि‍य अध्यावपक
कर्मयोगी- अपकल
कोना भेलनि‍ पि‍तामह चूकि‍?
रीति‍क कालपुरुखक नाओं-
कामदेव!!!
कोनो नै काम
भलमानुष नि‍ष्कानम
तेसर पहरक वि‍झनीक बाद
जगतधात्रीक नि‍त्यक दर्शन
तामझामक गाममे रहि‍तो
त्रि‍पुंडसँ मुक्तत
छुच्छेक हाथे तर्पण
आब की मंगैत छथि‍ बाबा?
झबरल आंगनमे शक्तिथ‍ सहचरी
जाइ रवि‍-शशि‍क कि‍रणकेँ
आत्मरसात् करबाक लेल
लोक करैछ अनर्गल प्रलाप
व्य र्थ कुटि‍चालि‍ रचैछ
चोरि‍ कऽ आडंवर करैछ
तनयक रूपमे ओ दुनू
बाबाक आंगनक श्रवण कुमार
“अचला” चंचला बनि
देलनि‍ कन्यांक उपहार
दु:खक सोतीमे
जखन अकुलाइत छैक मनुक्खच
तखन आस्तिइ‍कता जगैछ भूख
मुदा! ति‍रपि‍त बाबा
नै करैत छथि‍ भगवानसँ छल
सुरधामे जल
मन नि‍रमल....
समाजमे छन्हिर‍ शीतलताक आह
सदेह कवि‍ नै
तखन वैदेहीक चाह?
अपने नेपथ्य मे रहि
नाटकक कएलनि‍ निर्देशन
देसि‍ल वयनाक प्रति
कर्मक गति‍ अर्पण
एकाध प्रहसन लि‍खि
अकथ्यप कवि‍ता गढ़ि
कतेक आजाद भऽ गेल चि‍न्हा र
मुदा! इजोतक स्त्रो तक पि‍रही अन्हाЮर
कोनो नै छन्हि ‍ छोह
सबहक उत्कनर्ष हुअए
यएह आश, यएह मोह
की ब्राह्मण की अछोप
की धानुक की गोप
सबहक बाबा......
जे गाछ, छि‍अए छाहरि
वएह उतुंग
वएह श्रृंग
सि‍क्कठि‍ हुअए वा नरकटि
स्वीउकार करैए पड़तनि‍ समाजकेँ
बाबा सन चेतनशील मनुक्ख केँ
जे संस्कार लुटाबए
सबहक कल्यातणक लेल
अन्त र्मनसँ सोहर गाबए...।