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क़ातिल फिर नादानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ / मदन मोहन शर्मा 'अरविन्द'

क़ातिल फिर नादानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
पाहन कौ मन पानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ

उनसौं हाथ मिलें तौ कैसैं पथरीलौ पथ दूर किनारे
डगर-डगर आसानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ

दिन पै दिन परवान चढ़ रहे आहट सौं धड़कन के रिश्ते
हलचल आनी-जानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ

गहराई तक जाते-जाते बनतौ आयौ दर्द दवाई
साँची राम कहानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ

सुख-दुख साँझे संग बाँट लें हँसी एक सी टीस बराबर
सब की साँझ सुहानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ

पहलें सी मदभरी चाँदनी महकी रैन बहकती बतियाँ
फिर सौं नई-पुरानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ