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खुशियों को सँजोकर रखना, गम में न ये बदल जाएँ / पल्लवी मिश्रा

खुशियों को सँजोकर रखना, गम में न ये बदल जाएँ,
कहीं और पाने की चाहत में, ये भी न हाथ से निकल जाएँ।

चाँद की रोशनी काफी है मंज़िल की डगर दिखलाने को,
चिरागों को हाथ में लेने से, ये हाथ तेरे न जल जाएँ।

राहें अगर हैं खुरदुरी तो भी गम नहीं करना कभी,
संगमरमरी राहों पर कहीं ये कदम तेरे न फिसल जाएँ।

है गुलाब फूलों की मलिका, उस पर है मगर काँटों का पहरा,
गुलशन से इनको लेने में, कहीं ये शोख बदन न छिल जाएँ।

करना है जो भी आज करो, क्या बीता कल? क्या आने वाला?
फिक्रमंदी के आलम में कहीं उम्र के लम्हे न निकल जाएँ।