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गँवारों को मिलते सुख / सिर्गेय येसेनिन / वरयाम सिंह

गँवारों को मिलते हैं सुख,
दुख मिलते हैं रहमदिलों को ।
अरे, मुझे कुछ नहीं चाहिए
किसी का ग़म नहीं है मुझे ।

तरस आता है कुछ अपने पर
तरस आता है बेघर कुत्‍तों पर ।
यह सीधी-सी सड़क
मुझे लाई है मदिरालय तक ।

राक्षसो ! यह गाली-गलौच किसलिए ?
कहो, मैं बेटा नहीं हूँ अपने देश का ?
शराब की एक-एक घूँट के लिए
हममें से किसने गिरवी नहीं रखी पतलूनें ?

देखता हूँ, मटमैली खिड़की की तरफ़
दिल में आग है और उदासी ।
धूप में तपती सड़क
पड़ी है मेरे सामने ।

सड़क पर खड़ा है एक लड़का बहती नाक लिए
हवा गरम है और ख़ुश्‍क ।
लड़का ख़ुश है इतना
कि कुरेदे जा रहा है अपनी नाक ।

कुरेदता चल, कुरेदता चल, प्‍यारे
घुसड़ दे भीतर पूरी उँगली,
पर इतने ज़ोर से नहीं
कि घुस जाए तू ही भीतर ।

मैं तैयार हूँ । डरपोक हूँ ।
देखो — यह रही बोतलों की फौज !
अपना दिल बन्द करने के लिए
मैं इकट्ठा कर रहा हूँ ढक्‍कन ।