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गणतन्त्र दिवस पर राग यही दुहराया है / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

दशकों से गणतन्त्र दिवस पर, राग यही दुहराया है ।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है ।।

सिसक रहा जनतन्त्र हमारा, चलन घूस का ज़िन्दा है,
देख दशा आज़ादी की, बलिदानी भी शर्मिन्दा हैं,
रामराज के सपने देखे, रक्षराज ही पाया है ।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है ।१।

ये कैसा जनतन्त्र ? जहाँ पर जन-जन में बेकारी है,
जनसेवक तो मज़ा लूटता, पर जनता दुखियारी है,
आज दलाली की दलदल में, सबने पाँव फँसाया है ।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है ।२।

आज तस्करों के कब्ज़े में, नदियों की भी रेती है,
हरियाली की जगह, खेत में कंकरीट की खेती है,
अन्न उगाने वाले, दाता को अब दास बनाया है ।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है ।३।

गाँवों की ख़ाली धरती पर, चरागाह अब नहीं रहे,
बोलो कैसे अब स्वदेश में, दूध-दही की धार बहे,
अपनी पावन वसुन्धरा पर, काली-काली छाया है ।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है ।४।

मुख में राम बगल में चाकू, हत्या और हताशा है,
आशा की अब किरण नहीं है, चारों ओर निराशा है,
सुमन नोच कर काँटों से, क्यों अपना चमन सजाया है ।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है ।५।

आएगा वो दिवस कभी तो, जब सुख का सूरज होगा,
पंक सलामत रहे ताल में, पैदा भी नीरज होगा,
आशाओं से अभिलाषाओं का, संसार सजाया है ।
दशकों से गणतन्त्र पर्व पर, राग यही दुहराया है ।
होगा भ्रष्टाचार दूर, बस मन में यही समाया है ।६।