Last modified on 8 मई 2022, at 00:33

चुप चुप रहना सखी, चुप चुप ही रहना / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / प्रयाग शुक्ल

चुप चुप रहना सखी, चुप चुप ही रहना,
काँटा वो प्रेम का—
छाती में बींध उसे रखना ।

तुमको है मिली सुधा, मिटी नहीं
अब तक उसकी क्षुधा, भर दोगी उसमें क्या विष !

जलन अरे, जिसकी सब बींधेगी मर्म,
उसे खींच बाहर क्यों रखना !!

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल