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जगह / आशुतोष दुबे

एक संकुल संसार में
जो चला गया
वह अपने पीछे छोड़कर नही गया
कोई ख़ाली जगह

उसी की जगह ख़ाली रही
जो अब तक नही आया

बनी हुई जगहें
ईर्ष्या से देखती हैं

किस तरह
अनुपस्थिति बुनती है एक जगह
जो प्रतीक्षा करती है