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ज़िंदगी का गीत यूँ तो अब नए सुर—ताल पर है / द्विजेन्द्र 'द्विज'

ज़िंदगी का गीत यूँ तो अब नए सुर—ताल पर है

फिर भी जाने क्यों हमारी हर ख़ुशी हड़ताल पर है


हादसे की वजह तो अब दोस्तो! मिलती नहीं है

आजकल मुजरिम कोई बैठा हुआ पड़ताल पर है


आँधियों में क्या करें अब अपने घर की बात भी हम

ये समझिये एक तिनका मकड़ियों के जाल पर है


कैसे अपनी बात लेकर आप तक पहुँचेंगे हम, जब,

मसखरों का एक जमघट आपकी चौपाल पर है


रास्तों या मंज़िलों की फ़िक्र तो है बाद में ‘द्विज’

खेद पहले हमसफ़र की अनमनी—सी चाल पर है