भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा नाम / कृष्णमोहन झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद से मैंने गज भर सूत लिया
सूरज से आग्रह किया
कि वह किरण की एक सुई मुझे दे
समुद्र से कुछ मोती उधार लिए मैंने
समय से निवेदन किया कि वह थिर हो जाए
एक पल के लिए…

पृथ्वी की तमाम मज़बूरियों को बुहारकर रख दिया
एक तरफ़ मैंने

एक दिन
इस ज़िन्दगी की स्याह चादर पर
कुछ इस तरह पिरोया तुम्हारा नाम