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तुलसी अभिनन्दन / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

तुलसी, तेरा अभिनन्दन है!
श्रद्धा-सुमनों से विश्व सकल करता नत हो पद वन्दन है।
तुलसी, तेरा अभिनन्दन है!

बरसे भूतल पर तुम अपूर्व बन कर पयोद पीयूष-पुंज।
नवजीवन पाकर फूल उठा, उजड़ा हिन्दी का काव्य-कुंज।
कर दिया सुधा-रस सिंचन से तुमने सुरभित वन-नन्दन है।
तुलसी, तेरा अभिनन्दन है!

जब तोड़ मोह का प्रबल पाश हो गया हृदय पल में स्वतन्त्र।
हो रामभक्ति-रसलीन तभी रच डाले अगणित मुक्ति-मन्त्र।
निश्चय हो जाता छिन्न-भिन्न जिनके बल से भव-बन्धन है।
तुलसी, तेरा अभिनन्दन है!

साहित्य जगत की अमर ज्योति, हे भक्त-प्रवर भावुक अनन्य!
पाकर तुम-सा सुत महामहिम माँ हुलसी भी हो गई धन्य।
तेरी सुस्मृति हृत्तन्त्री में भर देती अभिनव स्पन्दन है।
तुलसी, तेरा अभिनन्दन है!

ले सार उपनिषद-वेदों का, भर कर भाषा में दिव्य ज्ञान।
कर गये परमहित संसृति का, रच ‘रामचरितमानस’ महान्।
जो शुचिता-प्रद मुद मंगलमय, सुख कर दुख द्वन्द-निकंदन है।
तुलसी, तेरा अभिनन्दन है!

हैं अगम अलौकिक कृत्य सभी थे अमर या कि नर किसे ज्ञात।
तुम प्रकट हुए दिनकर समान, लेकर सुखमय स्वर्णिम प्रभात।
कर गया भक्ति का पथ प्रशस्त जग में तव जीवन-स्यंदन है।
तुलसी, तेरा अभिनन्दन है!

झुक गया भुवन जब चरणों में, लखकर अनुपम तप तेज-त्याग।
था गूँज उठा युग-वाणी में तब एक यही समवेत राग।
‘‘हे देव! सुपावन तव पद-रज जग के मस्तक का चन्दन है।
तुलसी, तेरा अभिनन्दन है!

कर दिया समुन्नत गौरव से तुमने भारत का भव्य भाल।
जन-जन जगती का गायेगा युग-युग तक तेरा यश विशाल।
हे कवि-कुल मन मानस-मराल, शत बार तुम्हें अभिवन्दन है।
तुलसी, तेरा अभिनन्दन है!