Last modified on 17 फ़रवरी 2017, at 11:49

तेज़ी से बदलते हुए शहर... / ब्रजेश कृष्ण

जब तक कि वह
अपनी नाप के जूते तलाश कर
पहनता और चलता
तब तक तो
बहुत आगे बढ़ चुका था शहर

शहर में खुल चुका था ज़िमखाना क्लब
शहर में मिल रही थीं
शहनाज़ की प्रसाधन वस्तुएँ और
चुनी जा रही थी शहर की सुन्दरी
शहर में सभी प्राध्यापक खरीद चुके थे कारें
और भूल चुके थे लड़के और लड़कियाँ
अपने ही शहर का नाम

नये फ़्लाईओवर के आर-पार
मोटर साइकिल पर तेज़ी से दौड़ता हुआ शहर
अब बात करता था सिर्फ़ मोबाइल पर

नये आसमान की तलाश में
उड़ान भरने को आतुर
यह छोटा-सा शहर
बहुत तेज़ी से बदल रहा था
और वह
अपनी नाप के जूते तलाशते हुए
अब तक ठिठका खड़ा था
अम्बेडकर चौक की एक
पुरानी-सी दुकान पर।