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त्रिताल / शंख घोष / सुलोचना वर्मा

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तुम्हारा कोई धर्म नहीं है, सिर्फ़
जड़ से कसकर पकड़ने के सिवाय
तुम्हारा कोई धर्म नहीं है, सिर्फ़
सीने पर कुठार सहन करने के सिवाय
पाताल का मुख अचानक खुल जाने की स्थिति में
दोनों ओर हाथ फैलाने के सिवाय
तुम्हारा कोई धर्म नहीं है,
इस शून्यता को भरने के सिवाय |
श्मशान से फेंक देता है श्‍मशान
तुम्हारे ही शरीर को टुकड़ों में
दुःसमय तब तुम जानते हो
ज्वाला नहीं, जीवन बुनता है जरी |
तुम्हारा कोई धर्म नहीं है उस वक़्त
प्रहर जुड़ा त्रिताल सिर्फ़ गुँथा
मद्य पीकर तो मत्त होते सब
सिर्फ कवि ही होता है अपने दम पर मत्त

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा

लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
              ত্রিতাল

তোমার কোনো ধর্ম নেই, শুধু
শিকড় দিয়ে আঁকড়ে ধরা ছাড়া
তোমার কোনো ধর্ম নেই, শুধু
বুকে কুঠার সইতে পারা ছাড়া
পাতালমুখ হঠাত্ খুলে গেলে
দুধারে হাত ছড়িয়ে দেওয়া ছাড়া
তোমার কোনো ধর্ম নেই, এই
শূন্যতাকে ভরিয়ে দেওয়া ছাড়া।
শ্মশান থেকে শ্মশানে দেয় ছুঁড়ে
তোমারই ঐ টুকরো-করা-শরীর
দু:সময়ে তখন তুমি জানো
হলকা নয়, জীবন বোনে জরি।
তোমার কোনো ধর্ম নেই তখন
প্রহরজোড়া ত্রিতাল শুধু গাঁথা-
মদ খেয়ে তো মাতাল হত সবাই
কবিই শুধু নিজের জোরে মাতাল !

('दिनगुलि रातगुलि' नामक संग्रह में संकलित, कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - बाउल)