क्यों वा तन सुकुमारतनि, देखन पैये नीठि।
दीठि परत यों तरफरति, मानो लागी दीठि।।81।।
लगत बात ताको कहा, जा को सूछम गात।
नेक स्वास के लगत ही, पास नहीं ठहरात।।82।।
उदर सुधा सरस चंद पै, लसत कमल की पाँति।
ता पाछे किंकिनि परी, कनक भँवर की पाँति।।83।।
सुनियत कटि सूच्छम निपट, निकअ न देखत नैन।
देह भये यों जानिए, ज्यों रसना में बैन।।84।।
सूछम कटि वा बाल की, कहौं कवन परकार।
जाके ओर चितौत ही, परत दृगन में बार।।85।।
तुव पद सम तन पदुम को, कह्यो कवन बिधि जाय।
जिन राख्यो निज सीस पर, तुव पद को पद लाय।।86।।
लिखन चहौं मसि बोरि जब, अरुनाई तुव पाय।
तब लेखनि के सीस के, ईंगुर रँग ह्वै जाय।।87।।
जो हरि जग मोहित करी, सो हरि परे बेहाल।
कोहर सी एडीन सों, को हरि लियो न बाल।।88।।
तुव पग तल मृदुता चितै, कवि बरनत सकुचाहिं।
मन तें आवत जीभ लौं, मति छाले परि जाहिं।।89।।
गुँजरी चूरा कनक तुव, ऐसी बनी सुहाय।
मनु ससि रवि निज रंग कर, ल्याए पूजन पाय।।90।।