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दौलत का दो दान जगत को / जनार्दन राय

दौलत का दो दान जगत को,
दिल पर हो अधिकार मेरा।
तन चाहे जिसको दे दो,
पर मन पर हो अधिकार मेरा।
दौलत का दो दान जगत को!

सींच-सींच जीवन तक डाली,
पनपा दो, पुष्पित कर दो।
जिसको चाहो दे दो सब कुछ,
पर बहार मुझको दे दो।
दौलत का दो दान जगत को।

जीवन-गीत सुनाकर चाहे,
जिसको तुम अपना मानो।
निज उर के वंशी से निकले,
स्वर को पर मेरा मानो।
दौलत का दो दान जगत को।

सारी दुनियाँ तुमको माने,
जग को तुम अपना कह ले।
दिल को कर स्वाधीन कहे,
मुझको अपना सबसे पहले।
दौलत का दो दान जगत को।

गीत हमारा सुनो न समझो,
पर अगीत मेरा गा लो।
दिल में दुआ संजोया तेरे,
खातिर बस उसको ले लो।
दौलत का दो दान जगत को।

पाऊँ तुम से कभी न भौतिक,
सुख भगवन इतना कर दे।
पर तेरा आशीष मिले,
मेरी जय-जय दुनियाँ कर दे।
दौलत का दो दान जगत को।

अपना तुम मानो नहीं मानो,
उसकी भी परवाह नहीं।
मैं मानता रहूँ अपना,
तुमको केवल है चाह यही।
दौलत का दो दान जगत को।

जब तक नयन रहे देखूँ,
ओठों पर तब मुस्कान सदा।
सभी अदायें दे दो जग को,
मैं देखूँ बस यही अदा।
दौलत का दो दान जगत को।

-हरिवंश निवास, दलसिंह सराय।
10.8.1985 ई.