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नाएग्रा: महसूसने के दो पल (2) / माया मृग


(मेड ऑफ दि मिस्ट)

हे प्रभो !
अद्भुत है,
तेरी करूणा का जल !
यूं उमड़ता है सतत- कि
जैसे जल के चन्दोवे से
ढंक लेगा सबको
और अन्तहीन दौड़ में दौड़ते
डूबते सूरज की सभ्यता को,
अपने सज़ल उर में
समेट लेगा।
कितनी अद्भुत !
कितनी प्रत्यक्ष !
कितनी साक्षात् है
तुम्हारी करूणा !
ज्यों-ज्यों निकट से देखूं
स्नेह उमड़ आये
स्नेह के सघन उड़ते
तरल कणों में
उभरता है एक आकार !
एक भोली, अल्हड़
किशोरी का चेहरा,
जिसकी आँखों की गहराई में
तरल और सरल मन में
मुस्कराने लगते हो तुम।
और -
भीजे तन-भीजे मन से
घुलने लगता है
जल में जल।