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पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा|
भुक्ति-मुक्ति में गान तुम्हारा।

आंख-आंख पर भाव बदलकर,
चमके हो रंग-छवि के पलभर,
पुनः खोलकर हृदय-कमल कर,
गन्ध बने, अभिधान तुम्हारा।

विपुल-पुलक-व्याकुल अलि के दल
मानव मधु के लिए समुत्कल
उठे ज्योति के पंख खमण्डल,
अन्तस्तल अभियान तुम्हारा।

बैठे हृदयासन स्वतनत्र-मन,
किया समाहित रूप-विचिन्तन,
नृम्न मृण्मरण बचे विचक्षण,
ज्ञान-ज्ञान शुभ स्थान तुम्हारा।