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पिता और लड़की / ब्रजेश कृष्ण

लड़की बड़ी हो रही है
पिता को डर लग रहा है
दहलीज़ पर खड़ी लड़की
पाँव बाहर रखने को है
और भीतर आने को है
उसका इच्छा-संसार

लड़की कुछ नहीं जानती अपने बारे में
वह तो बस
पतंग होना चाहती है
या फिर मछली
लड़की ढूँढ़ रही है
इस ऋतु का सबसे सुन्दर फूल

लड़की नहीं पूछती
किसी भी टीवी विज्ञापन का अर्थ
लड़की अब व्याकुल नहीं होती
पिता को डर लग रहा है

लड़की अपने बड़े होने से बेख़बर है
मगर जानती है
कि वह पार कर लेगी
किसी भी सड़क को

पिता पिता है
और सिर्फ़ वही जानता है
व्यस्त, खु़दगर्ज़ और पागल
सड़क को पार करने का जोखि़म।