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पिया हे, सपना सपनैलै झुनझुनमा मोहि आनि देहाॅे हे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पुत्र होने का स्वप्न देखकर जच्चा अपने पति से खिलौना लाने का अनुरोध करती है; लेकिन पति कहता हैकि अबोा बच्चे को मैं घर में देख ही नहीं रहा हूँ, खिलौना क होगा? फिर, वह नाई को अपने नैहर ‘लोचन’ पहुँचाने के लिए कहती है। नाई वहाँ जाकर खबर कर आता है। खबर पाकर उसका भाई ‘पियरी’ के साथ आता है। वह सास से पूछकर अपने भाई को उपयुक्त स्थान पर बैठाती है और ‘पियरी’ को पहे गृहदेवता के आगे रखवाती है।
आज भी गाँवों में ऐसी परिपाटी है कि कहीं से संदेश आदि के आने पर उसे पहले गृहदेवता के पास रखा जाता है। इस गीत में पुत्रोत्पति का उल्लेख नहीं रहने पर भी स्वप्न की सत्यता के प्रति आस्था प्रकट की गई है तथा समय पर पुत्रोत्पति हो जाती है।

पिया हे, सपना सपनैलें झुनझुनमा<ref>लकड़ी, टिन आदि का खिलौना, जो हिलने से झुनझुन बजता है</ref> मोहि आनि देहो<ref>ला दो</ref> हे।
धनि रे, नै देखौं लड़का अबोधबा, झुनझुनमा कौने खेलत हे॥1॥
घर पछुअड़बा में बसै नौआ भैया, तोहि मोरा सहोदर भैया हे।
जाहो नौआ हमरी नइहरबा, लोचन<ref>सन्देश। कन्या के संतानवती होने पर पितृगृह से भेजा जानेवाला मांगलिक उपहार, जिसमें सौंठ, गुड़ आदि चीजें रहती हैं</ref> पहुँचाबहु हे॥2॥
एक कोस गेल नौआ, दुई को, आरो दोसर कोस हे।
तेसर कोस बाबा के नगरिया, महलिया सोहर गाबै हे॥3॥
कहाँ के तहुँ नौआ छिका, कौने बाबू पठाएल हे।
किनका क भेलेन होरिलबा, लोचन पहुँचाएल हे॥4॥
मथुरा के हम नौआ छिकें, बाबू साहेब पठाओल हे।
हुनकॉ घरे भेेलेन होरिलबा, लोचन पहुँचाएल हे॥5॥
अँगना बोहारैत तोहें चेरिया, त औरो चेरिया छिअ हे।
देखे गे नैहरबा बाट, सहोदर भैया आबै हे॥6॥
आगु रे आबै सहोदर भैया, पाछु त पिअरी साड़ी हे।
तहिं पाछु आबै भार सार, महल उठे सोहर हे॥7॥
मचिया बैठलि तहँ ससु, त हमरो गोसावनि<ref>श्रेष्ठ, पूज्या, देवतुल्य</ref> हे।
कहँमा में राखब सहोदर भैया, कहमा में पिअरी साड़ी हे।
अँचरे बैठाबिहऽ<ref>बैठाना</ref> सहोदर भैया, सिरा<ref>कुलदेवता का स्थान</ref> आयु पिअरी साड़ी हे॥8॥

शब्दार्थ
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