Last modified on 2 अप्रैल 2014, at 14:25

पेट / हरिऔध

कुछ बड़ाई अगर नहीं रखते।
हो सके कुछ न तो बड़े हो कर।
दुख कड़ाई किसे नहीं देती।
देख लो पेट तुम कड़े हो कर।

तू न करता अगर सितम होता।
तो बड़े चैन से बसर होती।
तो न हम बैठते पकड़ कर सर।
पेट तुझ में न जो कसर होती।

हो गरम जब हमें सताता है।
हो नरम जब रहा भरम खोता।
पेट! दे तो बता मरम इस का।
क्यों रहा तू नरम गरम होता।