Last modified on 26 जनवरी 2011, at 13:42

प्रेम-3 / अरुण देव

घने बादलों की तरह छा गया मैं
उसकी प्यासी धरती पर
उसकी देह जैसे एक सघन वृक्ष
अपनी पत्तियों से पसीजता हुआ पोर-पोर
उसके ताप से
धारदार बरसा मैं
मूसलाधार दिनों में

अगली सुबह खिली हुई धूप में
हमने सुखाए अपने-अपने क्लेश ।