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फर्क इतना है कि आँखों से परे है वर्ना / सलमान अख़्तर


फर्क इतना है कि आँखों से परे है वर्ना
रात के वक्त भी सूरज कहीं जलता होगा

खिड़कियां देर से खोलीं, ये बड़ी भूल हुई
मैं ये समझा था कि बाहर भी अँधेरा होगा

कौन दीवानों का देता है यहाँ साथ भला
कोई होगा मिरे जैसा तो अकेला होगा