वे बीनते हैं सिक्के
हर की पैड़ी पर
धूप में चमकती उनकी काली देह
मछली-सी फिसलती और
रोक लेती सिक्कों को तल से ठीक पहले
अपनी मुट्ठी में कसकर,
बहुत कुछ था वहाँ बीनने को
बहुत कुछ होता है बीनने को इस धरती पर
चिड़ियाँ उठाती हैं घास का तिनका
उठाता है फकीर पात्र अपना
उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्वर्य
मेरी बाहें छोटी पड़ गईं
मैंने उठाया जब तुम्हें।