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बान्हल केस फूजिये गेलै, पसीना चूबी गेलै रे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह के बहुत दिनों के बाद भी संतान नहीं होने के कारण पत्नी दुःखी होकर निराश हो जाती है, लेकिन ईश्वर की कृपा से उसकी निराशा आशा में परिवर्तित हो जाती है। पुत्र जन्म होने पर वह आनंदमग्न हो दरवाजे पर नटुआ और पमरिया नचाने तथा अपने प्रभु को बैठाकर सोहर सुनवाने का संकल्प करती है। इस गीत में ‘बँधे हुए केश खुल जाने’ तथा ‘पसीना चूने’ के लाक्षणिक प्रयोग द्वारा पति-पत्नी के पारस्परिक संयोग का सुन्दर वर्णन हुआ है।

बान्हल केस फूजिये<ref>खुल गया</ref> गेल, पसीना चूबी<ref>चू गया</ref> गेल रे।
ललना रे, तैयो<ref>तोभी</ref> नहिं होरिला जनम लेल, आब<ref>अब</ref> बंस बूड़ल रे॥1॥
अगिला पहर राती बीतल, पछिला पहर राती रे।
ललना, तबे कै होरिला जनम लेल, आब बंस बाढ़त रे॥2॥
दुअरिहिं नटुआ नचायब, अँगना पमरिया<ref>एक जाति विशेष; इस जाति के लोग पुत्र जन्म के अवसर पर बधैया गाकर इनाम पाते हैं</ref> रे।
ललना, माझे<ref>बीच में; मध्य में</ref> ठाम परभु के बैठायब, सोहर सुनायब हे॥3॥

शब्दार्थ
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