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बुझौवल- खण्ड-4 / अमरेन्द्र

31
सौ सैनिक-शव, इक ताबूत
जली केॅ सबटा राख-भभूत ।
-दियासलाई
32
सौ संबंधी मरलोॅ-भतलोॅ
इक कुइयाँ में पैलोॅ गेलै
एकेक करी केॅ खींची-खींची
बाहर करी जलैलोॅ गेलै ।
-दियासलाई
33
चिकनोॅ-चिकनोॅ देह गठीला
हेनोॅ रूपवती ऊ लीला
अपना दिश केकरा नै घींचै
देखवैय्या के फोटो खीचै ।
-आईना
34
बोलै कुछु नै बड्डी घाय
बहुरूपिया रं भेष बनाय
जेकरा देखै होने लागै
घोर अन्हरिया देखी भागै ।
-आईना
35
एक जनानी केॅ भटियैलेॅ
हवा उड़ैलेॅ चल्लोॅ जाय
उड़ी जनानी गेलै हिमालय
घुमी-घुमी केॅ लोर बहाय ।
-बदरा
36
भरी मुँह पर बारह टिकुली
सब्भे केॅ ऊ खूब सोहाय
ठोड़ी, गाल, कपारोॅ पर जे
दोनों आँख नचैलोॅ जाय ।
-घड़ी
37
अभी-अभी ई भालू छेलै
इखनी हाथी लागै छै
चाबुक खैथैं कानेॅ लागलै
लोर बहैतें भागै छै ।
-बदरा
38
एक घरोॅ में बारह बच्चा
माय-बाप सब साथे छै
सब बच्चा हरदम्में रुसलोॅ
गोड़ डुलाय नै माथे छै
माय-बाप घूमी समझावै
कुछ हेनोॅ ही बाते छै ।
-घड़ी
39
जादू-छड़ी घुमैथैं घन-घन
अंगुठा पर नाँचै इक चक्का
जे बतलैतै ओकरा लड्डू
नै बतलैतै ओकरा मुक्का ।
-चाक
40
माँटी के थाली पर माँटी
जै सें निकलै लोटा-बाटी ।
-चाक