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बुरा यह कि मैं कम बुरा हुआ / गणेश पाण्डेय

बुरा यह
कि मैं कम बुरा हुआ
किसी स्त्री से कुछ न छिपाया
किसी का दिल न दुखाया
किसी बच्चे से छल न किया
और बच्चे की माँ को छोड़कर
कहीं और गया नहीं
उस स्त्री से पूछने भी नहीं गया
कि उसने मेरा दिल क्यों दुखाया
यह सोच-सोच कर
मेरा हाल और बुरा हुआ
कि उस वक़्त कहाँ था कमबख़्त मैं
जब बँट रही थी बुराई
बेहिसाब

यह और बुरा हुआ
कि बुराई की इस चमकीली दुनिया में
कुछ भी ख़ास नहीं कर पाया
आख़िर
था तो मैं भी
कुछ-कुछ पढ़ा-लिखा
फिर क्यों नहीं कुछ बन पाया
पैसा तो पैसा
कोई ढंग की कविता
नहीं लिख पाया
किसी से
कभी ऊभ-चूभ जैसा
प्यार तक कर नहीं पाया

बुरा हुआ मेरे साथ
कि मैं कुछ भी नहीं कर पाया
बच्चों को छोड़कर
बीवी से भागकर
कुछ दूर
एक मुहल्ले से निकलकर
दूसरे मुहल्ले में तो जा नहीं पाया
बात-बेबात
खाता रहा बच्चों की डाँट
और बच्चों की माँ ने जब चाहा
रुलाया

हाय
इस जीवन में
जहाँ बहुत से लोगों ने
जी लिया कई जीवन
और कर लिया बहुत कुछ
मैं न कुछ कर पाया
न जी पाया
जीना तो दूर
मर तक तो पाया नहीं
बता दे कोई
अब तो बता दे
कि आख़िर मेरे जैसे
एक मामूली आदमी के साथ
इतना बुरा क्यों हुआ
कि मैं कम बुरा हुआ ।