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भारतीय नर-नारी दोनों का / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग गूजरी-ताल त्रिताल)
 
भारतीय नर-नारी दोनोंका घरमें समान अधिकार।
एक दूसरेके पूरक बन करते विपुल शक्ति-संचार॥

जैसे दो पहिये गाड़ी के चला रहे गाड़ी अनिवार।
त्यों दोनों मिल सदा चलाते ये गृहस्थका कारोबार॥

रहते पहिये सक्रिय दोनों जब गाड़ीके दोनों ओर।
चलती तभी सुचारु रूपसे गाड़ी सतत लक्ष्यकी ओर॥

अगर जोड़ दे को‌ई दोनों पहिये कभी एक ही ओर।
चलना रुक जायेगा, गाड़ी पड़ी रहेगी उस ही ठोर॥

वैसे ही नारी सँभालती-करती घरका सारा काम।
पुरुष देखता है बाहरका, अर्थार्जन का कार्य तमाम॥

नारी है घरकी साम्राज्ञी, पुरुष बाहरी कार्याधीश।
सेवक-सखा परस्पर दोनों, दोनों ही दोनोंके ईश॥

है घर एक, तथापि सदा है कर्मक्षेत्र दोनोंके भिन्न।
हो यदि कर्म विभिन्न न, तो बस, हो जायेगा घर उच्छिन्न॥

खूब निखरता यों दोनोंके मिलनेसे गृहस्थका रूप।
प्रीति परस्पर बढ़ती, बढ़ता पल-पल सुख-सौभाग्य अनूप॥

दोनों दोनोंको सुख देते, रहते स्व-सुख-कामना-हीन।
स्वार्थ न होनेसे दोनोंका चित न होता कभी मलीन॥

दोनों दोनोंका ही आदर करते, करते सद्‌‌-व्यवहार।
प्रेरित करते दोनों प्रभुकी ओर परस्पर बारंबार॥

जहाँ त्याग है, वहीं प्रेम है, प्रेम स्वयं ही है सुख-धाम।
त्याग-प्रेम-सुखमय भारत-नर-नारीका गृहस्थ अभिराम॥