भूख-भर आटा न था बस
और कुछ घाटा न था बस
थे अँधेरे थे उजाले
ठीक से बाँटा न था बस
गाल थे मजबूरियों के
हाथ ही चाँटा न था बस
खाइयों की थी रियासत
एक भी पाटा न था बस
नोच डाले पंख सारे
सिर अभी काटा न था बस