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भूख का विश्वविद्यालय / मार्टिन कार्टर / राजेश चन्द्र

विश्वविद्यालय है यह भूख और महाविनाश का
तीर्थयात्रा मानव की, एक लम्बा जुलूस ।
भूख के निशान भटकते फिरते हैं पृथ्वी पर
हरा पेड़ झूल गया है अन्तहीन विस्मृति की ओर
जीवन के मैदान उतराते हैं और डूब जाते हैं मवाद में
झोपड़ियाँ मनुष्यों की विपत्ति में गलती हैं ।

वे आते हैं खच्चर के खुरों के निशान में पाँव टिकाते हुए
पार करते हुए प्राचीन पुल
गौरव के मक़बरों
आकस्मिक भगदड़
दहशत और समय को ।

वे आते हैं सैलाब के सुदूर गाँव से चलकर
मध्य हवा और मध्य पृथ्वी से गुज़रते हुए
नँगेपन के इस सामान्य समय में ।

भूख की एक जोड़ी सलाख़ें धात्विक ललाट पर उनके
एक जोड़ी ऋतुएँ उनका उपहास उड़ाती हुईं
भीषण अकाल और सैलाब ।

इस घुप्प अन्धियारे में
आधे धँसे हुए ज़मीन में ।
ये वही जिनकी नहीं कोई आवाज़ इस रिक्तता में,
इस असम्भाव्य में, छायाविहीनता में

वे आते हैं वर्ष के दलदल में पाँव टिकाते
घुलते हुए स्याह भारी जल में
उड़ान भरते दृष्टिहीन चमगादड़ों की गहन आवाज़ों के साथ-साथ ।
कितना लम्बा है जुलूस लोगों का और जीवन कितना लम्बा
कितना विस्तृत उसका वितान ।

हवा है धूल और स्मृति का लम्बा अन्तराल
वर्षाकाल है जबकि निद्राहीन मेंढ़क चुप
टूटी हुई चिमनियाँ धुआँरहित हवा में
फूस की झोपड़ियाँ भूरी और लोहे की काँटेदार बाड़

म्बी क़तारें चली आती हुईं प्रशस्त शहरों की ओर
आसमान पर सुनहरा चान्द जैसे बड़ा-सा सिक्का
मांस की तह के ऐन नीचे हड्डी की सतह
रुग्णता की चोंच चट्टान पर टूटती हुई
आह कितना लम्बा जुलूस लोगों का और जीवन कितना लम्बा
कितना विस्तृत उसका वितान
कितनी सर्द और क्रूर हवा
कितनी सर्द है कुदाल खेत में

वे आते हैं जैसे आते हैं समुद्री पक्षी
नाव के हिलकोरों पर फड़फड़ाते हुए
सूर्यास्त की यातना है बैंगनी पट्टियों में
या कि अग्नि के चूर्ण धूल-से बिखरे हुए साँझ के झुटपुटे में
झुर्रीदार रेत पर झाग के पानी का सँगीत ।

रात की लम्बी सड़कें ऊपर और नीचे को हिलती हुईं
खोला जा रहा हो किसी स्त्री की जँघाओं
और जनन की गुफ़ा को जैसे ।
नगाड़ा लौटता है और दम तोड़ देता है ।
दढ़ियल मर्द निढाल होकर सो जाते हैं ।
तड़के जाग कर बाँग देते हैं मुर्गे बिगुल की तरह ।

वे जो अलसुबह जाग जाते हैं
पौ फटने के साथ देखते हैं निष्प्रभ होते चान्द को ।
वे जिन्होंने सुनी है शँखध्वनि और घण्टे की आवाज़ ।
वे ही जिनकी कोई आवाज़ नहीं है रिक्तता में
असम्भाव्य में
छायाविहीनता में ।
आह कितना लम्बा जुलूस लोगों का और जीवन कितना लम्बा
कितना विस्तृत है उसका वितान ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र