Last modified on 3 जून 2012, at 16:20

मन में है बसा वही मधुर मुख / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर  » संग्रह: निरुपमा, करना मुझको क्षमा‍
»  मन में है बसा वही मधुर मुख

ओइ मधुर मुख जागे मन ।
भुलिब ना ए जीवने, की स्वपने की जागरणे ।।

मन में है बसा वही मधुर मुख ।
जागूँ या देखूँ मैं सपना, लगे वही अपना ।।
जीवन में भूलूँगा कभी नहीं ।
जानो या जानो न तुम ।।
मन में है बजे सदा वही मधुर बाँसुरी ।
मन में जो बसे तुम ।
बता नहीं पाऊँ ।
इन कातर नयनों में वही रखूँ सनमुख ।।

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 9 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)