मेरे बाहर, भीतर, अन्तर के कोने-कोने में
ब्यापकर हृदय को
तुम्हारी उपस्थिति।
फूल की पंखुड़ी के परदे में
सोती हुई फ़सल-सा
कलेजे के निगूढ़ राजमार्ग पर
पदचारण तुम्हारा।
सीप के आवरण में पलती
मुक्ता के आनन्द जैसा
भीतर के नील तट पर
तुम्हारा गहन स्पर्श।
सकुशल हूँ, सकुशल रहो तुम भी,
पत्र लिखना आकाश के पते पर,
दे देना अपनी माला
जोगी इस मन को।
मूल बांग्ला से शिव किशोर तिवारी द्वारा अनूदित