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मैं उससे घृणा करता हूँ / नवारुण भट्टाचार्य

जो भाई निरपराध हो रही इन हत्याओं का बदला लेना नहीं चाहता
मैं उससे घृणा करता हूँ...
जो पिता आज भी दरवाज़े पर निर्लज्ज खड़ा है
मैं उससे घृणा करता हूँ...
चेतना पथ से जुड़ी हुई आठ जोड़ा आँखें<ref>पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक में कोलकाता के आठ छात्रों की हत्या कर धान की क्यारियों में फेंक दिया था। उनकी पीठ पर लिखा था देशद्रोही..</ref>
बुलाती हैं हमे गाहे-बगाहे धान की क्यारियों में
यह मौत की घाटी नहीं है मेरा देश
जल्लादों का उल्लास मंच नहीं है मेरा देश
मृत्यु उत्पत्यका नहीं है मेरा देश
मैं देश को वापस अपने सीने में छूपा लूँगा...

यही वह वक़्त है जब पुलिस की झुलसाऊ हैड लाइट रौशनी में
स्थिर दृष्टि रखकर पढ़ी जा सकती है कविता
यही वह वक़्त है जब अपने शरीर का रक्त-मांस-मज्जा देकर
कोलाज पद्धति में लिखी जा सकती है कविता
कविता के गाँव से कविता के शहर को घेर लेने का वक़्त यही है
हमारे कवियों को लोर्का की तरह हथियार बाँधकर तैयार रहना चाहिए....

शब्दार्थ
<references/>