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ये लहरें घेर लेती हैं / शमशेर बहादुर सिंह

ये लहरें घेर लेती हैं
ये लहरें ...

उभर कर अर्द्ध द्वितीया
टूट जाता है...

अंतरिक्ष में
ठहरा एक

दीर्घ रहेगा समतल - मौन

दू्र... उत्तर पूर्व तक

तीन
ब्रह्मांड
टूटे हुए मिले चले गये हैं

अगिन व्यथा भर सहसा
कौन भाव
बिखर गया इन सब पर?