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वैधा विहार / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

प्रकृति-मानस का प्रिय अनुराग,
लालसाओं का ललित मिलाप;
रसिकता का रस-सिध्द रहस्य,
मुग्धता-मंजुल कार्य-कलाप।
अभिजनन का साधान सर्वस्व,
भवन-भावन-विलास-अवलंब;
युवकता-युवती का शृंगार,
नवल-यौवन-कल्लोल-कदंब।
मधुरता-सरिता-सरस-प्रवाह,
मोद-मंदिर मौलिक आधार;
लोक-उपचय का प्रबल प्रयोग,
वंश-वर्धान का वर आधार।
युगल उर मिलन मनोरम सूत्र,
परस्पर परिचय का उपचार;
विविध-सुख-भोग-पयोधि-मयंक,
केलि-वीणा का झंकृत तार।
काम-सिर का सेहरा कमनीय,
रति-गले का बहु मोहक हार;
कामना का है मधुर विकास,
विविध-नर-नारी-वैधा विहार।