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वो इन्साँ और होंगे राह में जो टूटते होंगे / शैलेश ज़ैदी

वो इन्साँ और होंगे राह में जो टूटते होंगे।
हमारे साथ जितने लोग होंगे सब खरे होंगे॥

करो मत पत्थरों की क़ीमतों से हमको आतंकित।
हमारे पास ऐसे कितने ही पत्थर पड़े होंगे॥

तुम्हारे जीतने के जश्न में खुशियाँ मनी होंगी।
मगर कुछ लोग चालों पर तुम्हारी हँस रहे होंगे॥

ये कैसे सोचा तुमने सारी नदियाँ सूख जायेंगी।
समझते क्यों रहे तुम रेत के सब घर बने होंगे॥

अंधेरों के परिन्दे छोड़कर खुश हो रहे हो तुम।
समझते हो कि हर घर में इन्हीं के घोसले होंगे।

मैं सच कहता हूँ जिस दिन धूप में आयेगी कुछ तेज़ी।
तुम्हारे पास बस टूटे हुए कुछ आइने होंगे॥

बहुत मज़बूत थीं इनकी जड़ें विश्वास है मुझकों।
मैं कैसे मान लूँ ये पेड़ आँधी में गिरे होंगे॥