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शाश्वत संबंध / अज्ञेय

क्रमश: मृत्यु भी सत्य ही है; उसे हम छोड़ नहीं सकते।

हाँ, शिवता सुन्दरता हम उसे दे सकते हैं,
अभी किन्तु जीवन : अन्तहीन तपस्या जिस से हम
मुँह मोड़ नहीं सकते।

यह सम्बन्ध (या विपर्यास?) शाश्वत है क्यों कि इसे
हम चाहे अर्थ में ले सकते हैं।

दिल्ली, 19 मार्च, 1954