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सलीब / नूपुर अशोक

वक़्त ने
मेरे सामने एक सलीब रख दी
मैंने सलीब पर खुद को टाँग कर
कीलें ठोक दीं
और हर कील के साथ कहा
“खुदा मुझे कभी माफ़ मत करना
क्योंकि मुझे मालूम है
मैं क्या कर रही हूँ”