भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँझ - 2 / अनिता मंडा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जले ढीबरी
बंद दरवाज़े में
नीचे से झाँके
रोशनी की लकीर
ज्यों बैठा हो फ़कीर
ऐसे ही क्षितिज तले
सूरज गया है अभी-अभी।